Friday, July 17, 2015

रामकृष्ण परमहंस विचार

ठाकुर श्री रामकृष्ण परमहंस अपने भक्तगणों को, जो कि सैकड़ो की सख्या में उनके पास आते थे, कहा करते थे कि कामिनी-कांचन, दोनों चीजे इश्वर प्राप्ति के मार्ग में विशेष रूप से बाधक है। बुरे आचरण वाली नारी में भी वे जगन्माता का साक्षात् स्वरूप देखते थे और इसी भाव से उसका आदर करते थे। उनका कांचन त्याग इतना पूर्ण था कि यदि वे पैसे या रूपये को छू लेते तो इनकी उँगलियाँ ही टेढ़ी-मेढ़ी होने लगती थी। कभी-2 वे गिनियों और मिट्टी को एक साथ अंजुलि में लेकर गंगाजी के किनारे बैठ जाते थे और मिट्टी-पैसा, पैसा-मिट्टी(टाका-माटी, माटी-टाका बंगाली में) कहते हुए दोनों चीजों को मलते-2 श्री गंगाजी की धार में बहा देते थे। वे कहते थे, ‘‘ विषय की वासना तथा कामिनी-कांचन पर मोह रखने से कुछ भी प्राप्त नहीं होता। यदि विषयआसिक्त रहे तो संन्यास लेने पर भी कुछ नहीं होता- जैसे थूक को फेंककर फिर चाट लेना।’’ (श्री रामकृष्ण वचनामृत, भाग प्रथम, परिच्छेद 35, पृष्ठ 312

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