Tuesday, July 21, 2015

प्रारब्द से मुक्ति का उपाए



जो आत्म चिंतन में लीन रहते है जो सत्ये मार्गी बनना चाहते हैं जो अभी मार्ग तलाश रहे हैं यदि उनको जग का भी आभास है तो या उनका मन अभी जग से नही हटा है तो समझना चाहिए की उनके प्रारब्द अभी उनकी बाधा बने हुए हैं जब तक सुख दुःख अनुभव होते  है तब तक प्रारब्द ही माना जायेगा इसको समाप्त करने का उपाए परमात्मा की प्रेरणा से आपको बताने का प्रयास किया जा रहा है अत: सावधानी पूर्वक ग्रहण करें |

जिस प्रकार स्वप्न में किये हुए कर्म स्वप्न टूटते ही नष्ट हो जाते है ठीक वेसे ही जब हमे निज स्वरुप का बोध हो जाता है तो हमारे सरे संचित कर्म नष्ट हो जाते हैं जिस प्रकार सपने के पाप पुण्ये का कभी फल नही मिलता उसी प्रकार जब ये संसार स्वप्न जैसा प्रतीत होने लगेगा तो  हम भी इस के कर्म बंधन से मुक्त हो जायेंगे जिस प्रकार शराब के जाम में मदिरा डाल देने से जाम को नशा नही होता वह उस से अछुता रहता है उसी प्रकार हम भी इस संसार के कर्मो और प्रारब्द से मुक्त रहेंगे |
कहा जाता है की कर्म सब को भोगना पड़ता है और प्रारब्द बड़ा बलवान है  पर जो सदा चित को परमात्मा में स्थित रखते है उनको प्रारब्द नही सताता उसके सभी संचित और वर्तमान के कर्मों से मुक्ति मिल जाती है
क्योंकि परमात्मा में चित रखने वाले का भाव हमेशा जागृत रहता है क्योंकि परमात्मा स्वपन से परे  है इसलिए वो सदेव जागृत है उनमे ध्यान लगाने वाला भी जागृत भाव में आ जाता है और उसको स्वपन के कर्म (संगृहीत और वर्तमान व भविष्य )  से छुटकारा मिल जाता है ....

 प्रणाम जी 

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