Friday, July 31, 2015

परमात्मा का सम्बोधन

सुप्रभात जी


पुराण संहिता अध्याय २३ में अक्षरातीत व उनकी आत्माओं के बीच, अखण्ड परमधाम (अखण्ड योगमाया से परे दिव्य ब्रह्मपुर धाम) में, हुए प्रेम-विवाद का भी सांकेतिक वर्णन है, जो निम्नलिखित है

अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म अपनी आत्माओं से कहते हैं, प्रकृति की लीला मोहित करने वाली तथा अपने अमृतमयी आनन्द रूपी दीवाल को स्याही की तरह काली करने वाली है, जहां केवल प्रवेश करने मात्र से अपनी बुद्धि नहीं रहती है ।।५६।। पांच तत्वों से बने हुए शरीर को ही अपने आत्मिक रूप में माना जाता है, जिससे आत्मिक गुण तो छिप जाते हैं ।।५७।। और उनकी जगह मोह जनित दोष पैदा हो जाते हैं । हे सखियों ! तुम वहां जाकर माया के ही कार्यों को करोगी । जिस माया में आत्मा के आनन्द को हरने वाली तृष्णा रूपी पिशाचनी है ।।५८।। जहां काम, क्रोध, आदि छः शत्रु स्थित हैं, जो जीव को पाप में डूबोकर तथा क्रूर कर्म कराकर उसे बलहीन करके लूट लेते हैं ।।५९।। वहां जाकर तुम यहां के अपने स्वाभाविक गुणों, सौन्दर्य और चतुरता के विपरीत हो जाओगी । मुझे तुम कहीं भी नहीं देखोगी और हमेशा ही मुझको भूली रहोगी ।।७८।।

प्रणाम जी

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