Saturday, August 1, 2015


बोले चाले पर कोई न पेहेचाने, परखत नहीं परखानो ।
महामत कहें माहें पार खोजोगे, तब जाए आप ओलखानो ।।

अनेक लोगोंने परमात्माके विषयमें ज्ञाानोपदेश दिया तथा अनेक लोगोंने परमात्माकी प्राप्तिके लिए साधनाएँ भी कीं किन्तु किसीने भी उन्हें नहीं पहचाना. इस प्रकार प्रयत्न करनेपर भी पहचान योग्य परब्रह्म परमात्मा पहचाने नहीं गए. शंकराचार्य जी कहते हैं कि किसी प्रकार इस दुर्लभ मनुष्य जन्म को पाकर और उसमें भी , जिसमें श्रुति के सिद्धान्त का ज्ञान होता है , ऐसा पुरुषत्व पाकर जो मूढ़ बुद्धि अपनी मुक्ति के लिए प्रयत्न नहीं करता है , वह असत् ( जड़ प्रकृति ) में आस्था रखने के कारण अपने को नष्ट करता है और निश्चय ही वह आत्मघाती है । ( विवेक चूड़ामणि ४ ) इसलिय अन्तर्मुख होकर जब परम तत्त्वको ढूँढोगे, तब आत्मा और परमात्माकी स्वतः पहचान हो जाएगी..यही जीवन की सार्थकता है और मानव जीवन का परम और एकमात्र लक्षय ...

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प्रणाम जी

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