Thursday, August 27, 2015

कृष्ण कया है

कृष्ण शब्द के अनेक अर्थ हैं।
कृष् धातु का एक अर्थ है खेत जोतना,
दूसरा अर्थ है आकर्षित करना।
वे जो खींच लेते हैं, वे जो प्रत्येक
को अपनी ओरआकर्षित करते हैं, जो सम्पूर्ण
संसार के प्राण हैं- वही हैं कृष्ण।
कृष्ण का अर्थ है विश्व का प्राण,
उसकी आत्मा।
कृष्ण का तीसरा अर्थ है वह तत्व जो सबके 'मैं-
पन' में रहता है।
मैं हूँ, क्योंकि कृष्ण है।
मेरा अस्तित्व है, क्योंकि कृष्ण का अस्तित्व है।
अर्थात यदि कृष्ण नहीं हो तो मेरा अस्तित्व
भी नहीं होगा।
मेरा अस्तित्व पूर्णत: कृष्ण पर निर्भर करता है।
मेरा होना ही कृष्ण के होने का लक्षण या प्रमाण
है।
कृष्ण कहते हैं, 'ये यथा मां प्रपद्यन्ते'
जो कुछ भी हम स्पर्श करते हैं, जो भी हम इस
विश्व में देखते हैं- वह सब कुछ कृष्ण का ही है।

इसलिय कृष्ण कोई वजूद का नाम नही है व्यापकता कृष्ण है.. परमधाम मे सत्य आकर्षण है परमधाम निज स्वरूप है आनंद का और आनंद ही बृह्म है.. आतमांये अंश है परमात्मा की ..और अंशी अपने अंश की और सदैव आकृषित रहती है जैसे मिट्टी का ढ़ेला कितना भी ऊपर फेंको पर वापस पृथ्वी की और ही आता है कयोंकी वो उसका अंश है इसी तरह ऐसे ही अग्नि उपर उठती है कयोंकी अंश है सुर्य का इसी इसी प्रकार हम आत्मांये आनंद अंग होने के कारण सदैव आनंद की और आकर्षित रहतीं हैं आनंद ही बृह्म है इसलिय हमारा परम आकर्षण परमात्मा है यानी वो हमारे सबसे बडे कृष्ण हैं. कयोंकी आकर्षण ही कृष्ण है परमात्मा परम आकर्षण हैं इसलिय वो परम कृष्ण हैं..आत्मांये धाम की और आकर्षित रहतीं है इसलिय परमधाम हमारा कृष्ण है..
कृष्ण को अगर किसी शरीर का नाम समझते हो तो तो तुरंत अपना मार्ग बदलें कयोंकी आप विपरित मार्ग पर हैं..संकिर्ता कृष्ण नही है व्यापकता कृष्ण है...

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment