सुप्रभात जी
अठोत्तर सौ पख साखा सही , शाला है गोलोक ।
सतगुर चरण को क्षेत्र है , जहां जाए सब सोक ।।
१०८ पक्षों को ही शाखा कहा गया है । आज तक कोई भी १०८ की व्याख्या नहीं कर सका । तारतम ज्ञान से ही इसका भेद खुल सका है । १०८ से तात्पर्य अध्यात्म के १०८ पक्षों से है जो क्षर, अक्षर व अक्षरातीत में विस्तृत हैं, अतः उनसे तीनों का संक्षिप्त ज्ञान हो जाता है ।
संसार के ८१ पक्ष = ९ प्रकार की भक्ति (श्रवण, कीर्तन, स्मरण, अर्चन, पाद सेवन, वन्दन, दास्य, सख्य और आत्म निवेदन) x ३ स्तर (प्रवाह, मर्यादा, पुष्ट) x ३ गुण (सत्, रज, तम) ।
बेहद के २ पक्ष - पहला पक्ष वल्लभाचार्य जी का है, जिन्होंने निराकार को पार करके अखण्ड गोलोक (योगमाया) का वर्णन किया । दूसरा पक्ष इस ब्रह्माण्ड में अवतरित अक्षर ब्रह्म की पांच वासनाओं (सदाशिव जी, विष्णु जी, सनकादि चार ऋषि, कबीर जी, सुकदेव ऋषि) का है, जिन्होंने अखण्ड योगमाया तक का ज्ञान दिया ।
अन्तिम २५ पक्ष अखण्ड योगमाया से भी परे दिव्य परमधाम के हैं, जिनका वर्णन आज तक इस ब्रह्माण्ड में कोई भी नहीं कर सका ।
अखण्ड गोलोक को शाला (आंगन) माना गया है । यहां गोलोक का तात्पर्य इस नश्वर जगत के किसी स्थान से नहीं है, अपितु वह तो क्षर ब्रह्माण्ड से परे अखण्ड योगमाया के ब्रह्माण्ड में है । माहेश्वर तन्त्र (५०/६६) में भी कहा गया है कि गोलोक कूटस्थ अक्षर ब्रह्म का साक्षात् हृदय है, जहां पुरुषोत्तम (अक्षरातीत) के द्वारा अखण्ड किया हुआ कृष्ण तन गोपियों के साथ क्रीड़ा करता है । सच्चिदानन्द परब्रह्म की आनन्द स्वरूपा श्री श्यामा जी के चरण कमल ही हमारा क्षेत्र हैं, जिनके दर्शन के आनन्द से सभी सांसारिक ताप मिट जाते हैं ...
प्रणाम जी
अठोत्तर सौ पख साखा सही , शाला है गोलोक ।
सतगुर चरण को क्षेत्र है , जहां जाए सब सोक ।।
१०८ पक्षों को ही शाखा कहा गया है । आज तक कोई भी १०८ की व्याख्या नहीं कर सका । तारतम ज्ञान से ही इसका भेद खुल सका है । १०८ से तात्पर्य अध्यात्म के १०८ पक्षों से है जो क्षर, अक्षर व अक्षरातीत में विस्तृत हैं, अतः उनसे तीनों का संक्षिप्त ज्ञान हो जाता है ।
संसार के ८१ पक्ष = ९ प्रकार की भक्ति (श्रवण, कीर्तन, स्मरण, अर्चन, पाद सेवन, वन्दन, दास्य, सख्य और आत्म निवेदन) x ३ स्तर (प्रवाह, मर्यादा, पुष्ट) x ३ गुण (सत्, रज, तम) ।
बेहद के २ पक्ष - पहला पक्ष वल्लभाचार्य जी का है, जिन्होंने निराकार को पार करके अखण्ड गोलोक (योगमाया) का वर्णन किया । दूसरा पक्ष इस ब्रह्माण्ड में अवतरित अक्षर ब्रह्म की पांच वासनाओं (सदाशिव जी, विष्णु जी, सनकादि चार ऋषि, कबीर जी, सुकदेव ऋषि) का है, जिन्होंने अखण्ड योगमाया तक का ज्ञान दिया ।
अन्तिम २५ पक्ष अखण्ड योगमाया से भी परे दिव्य परमधाम के हैं, जिनका वर्णन आज तक इस ब्रह्माण्ड में कोई भी नहीं कर सका ।
अखण्ड गोलोक को शाला (आंगन) माना गया है । यहां गोलोक का तात्पर्य इस नश्वर जगत के किसी स्थान से नहीं है, अपितु वह तो क्षर ब्रह्माण्ड से परे अखण्ड योगमाया के ब्रह्माण्ड में है । माहेश्वर तन्त्र (५०/६६) में भी कहा गया है कि गोलोक कूटस्थ अक्षर ब्रह्म का साक्षात् हृदय है, जहां पुरुषोत्तम (अक्षरातीत) के द्वारा अखण्ड किया हुआ कृष्ण तन गोपियों के साथ क्रीड़ा करता है । सच्चिदानन्द परब्रह्म की आनन्द स्वरूपा श्री श्यामा जी के चरण कमल ही हमारा क्षेत्र हैं, जिनके दर्शन के आनन्द से सभी सांसारिक ताप मिट जाते हैं ...
प्रणाम जी
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