Wednesday, August 5, 2015

वाणी

इतहीं सिजदा बंदगी , इतहीं जारत जगात ।

इतहीं जिकर हक दोस्ती , इतहीं रोजा खोलात ।।  (श्री मुख वाणी- सि. २/४६)

अब हमें अपनें धाम हृदय में विराजमान धाम धनी पूरणबृह्म परमात्मा के चरणों में प्रणाम करना है और अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति से इन्हें रिझाना है । इन्हीं के दर्शन  तीर्थ यात्रा (जियारत)  है और इन्हीं पर अपना सर्वस्व समर्पण (जकात) करना है । इन्हीं के चरणों में बैठकर पूरणबृह्म परमात्मा के प्रेम की वार्ता रूपी चर्चा (जिकर) का श्रवण करना है । इन्हीं पूरणबृह्म परमात्मा जी के पावन सान्निध्य में श्रृद्धा और सेवा के द्वारा स्वयं को पवित्र करना (रोजे रखना) है ..

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment