Monday, August 3, 2015

दिव्य ब्रह्मपुर धाम है , घर अक्षरातीत निवास ।
निजानन्द है सम्प्रदा , ए उत्तर प्रस्न प्रकास ।।८३।।

ब्रह्मसृष्टियों का धाम दिव्य ब्रह्मपुर (परमधाम) है, जो क्षर व अक्षर से परे स्थित है । उस परमधाम का कण-कण तेज, सुगन्धि, चेतनता और आनन्द से परिपूर्ण है । वही धाम अक्षरातीत व ब्रह्मसृष्टियों के मूल तनों (परआतम) का असल निवास है । यहां के कण-कण में अक्षरातीत का स्वरूप विराजमान होने से इसे स्वलीला अद्वैत कहा जाता है ।

जो सर्वज्ञ, सबको जानने वाला ब्रह्म है, जिसकी महिमा जगत में है, निश्चित रूप से वह ब्रह्म अमृतस्वरूप दिव्य ब्रह्मपुर में स्थित है । (मुण्डक. २/२/७-३९)

प्रणाम जी

No comments:

Post a Comment