Wednesday, August 19, 2015

नूर अकल इस्राफील , ले पोहोंच्या पार बेहद ।

जिन कोई हिसबो खेल में , याको रंचक न लगे सब्द ॥ (श्री कुल्जम स्वरूप-सनंध ३८/९४)

क़ियामत के समय इस्राफील फरिश्ते के भी अवतरण का वर्णन है, जिसके माध्यम से परमधाम का वह अनुपम ज्ञान अवतरित होना है जिससे सारी दुनिया इस दुःखमय भवसागर से पार हो जायेगी तथा अज्ञानता के बड़े-बड़े पहाड़ (आचार्य, मौलवी-मुल्ला व पादरी) भी नष्ट हो जायेंगे अर्थात् शक्तिहीन हो जायेंगे । तफ़्सीर-ए-हुसैनी भाग २ पृष्ठ ४१ पर लिखा है कि क़ियामत के दिन इस्राफील सूर फूंकेगा तथा पहाड़ों को जड़ से उखाड़ देगा । सब पैरवी करेंगे, मोमिन तो जल्दी के साथ और काफ़िर देर के साथ ।

तो मुसाफ मगज असराफीलें , किए जाहेर कई विध गाए ।

एक सूरें दुनी फना करी , किए दूजे सूरे कायम उठाए ॥ (श्री कुल्जम स्वरूप-मा. सा. १२/२५)

अर्थात् जाग्रत बुद्धि के फरिश्ते इस्राफील ने अल्लाह स्वरूप श्री प्राणनाथ जी की आज्ञा से क़ुरआन के बातूनी भेदों को स्पष्ट किया । उसने अपने ज्ञान के एक सूर से दुनिया की अज्ञानता को समाप्त कर दिया तथा दूसरे सूर से पूरे ब्रह्माण्ड को अखण्ड मुक्ति की बख्शीश दी ।

इमाम महदी श्री प्राणनाथ जी की कृपा से जाग्रत बुद्धि की तारतम वाणी (श्री कुल्जम स्वरूप) का अवतरित होना इस बात का स्पष्ट प्रमाण है कि इस्राफील ने आकर सूर फूंक दिया है । श्री कुल्जम स्वरूप वाणी के अवतरण की लीला श्री प्राणनाथ जी के द्वारा प्रकट रूप में पाँचवे दिन अर्थात् सम्वत् १७१२ से १७५१ के बीच हुई । उसके बाद से मोमिनों की लीला का यह छठा दिन लगभग तीन सौ वर्षों से चल रहा है । छठे दिन की लीला पूरी हो जाने पर इस्राफील फरिश्ता दूसरी बार सूर फूंकेगा जिससे सारे ब्रह्माण्ड को योगमाया (बहिश्तों) में मुक्ति मिलेगी..
(ज़िबरील और इस्राफील दोनों ही अक्षर ब्रह्म के फरिश्ते हैं । हिन्दू धर्मग्रन्थों में जिसे अक्षर ब्रह्म की जाग्रत बुद्धि कहा जाता है, उसे ही क़ुरआन में इस्राफील कहा गया है तथा जिसे जोश का फरिश्ता कहा जाता है, उसे क़ुरआन में ज़िबरील कहा गया है )

प्रणांम जी

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