"संसार के सुख और भोग बादलों में कौंधने वाली विद्युत के समान अस्थिर हैं । जीवन हवा के झरोकों से लहलहाते कमल के पत्तों पर तैरने वाली पानी की बूँद के समान क्षणभंगुर है । जीवन की उमंगें और वासनाएँ भी अस्थायी हैं । बुद्धिमान को चाहिए कि इन सब बातों को समझकर अपने मन को स्थिरता और धैर्य के साथ ब्रह्मचिन्तन में लगाये । संसार के नाना प्रकार के सुख भोग क्षणभंगुर हैं और साथ ही संसार में आवागमन के कारण हैं । इस संसार का कोई भी सुख स्थिर नहीं है , अतः सुख के लिए मारे मारे फिरना व्यर्थ है । भोगों का संग्रह बंद करो और अपने आशा रूपी बन्धनों के त्याग से निर्मल हुए मन को अपने आत्म स्वरूप में और परब्रह्म में स्थिर करो । भोगों की ओर से मन को हटाकर परब्रह्म में लगाना ही सर्वोतम कार्य है ..
प्रणाम जी
प्रणाम जी
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