Thursday, August 13, 2015

सतगुर ब्रह्मानंद हैं , सूत्र है अक्षर रूप ।

सिखा सदा तिनसे परे , चेतन चिद जो अनूप ।।७७।।

आत्म भाव मे  किसी पंचभौतिक तन को सदगुरु नहीं माना जाता, अपितु परब्रह्म अक्षरातीत की आनन्द अंग (श्री श्यामा जी) को सदगुरु की महिमा दी गई है । उन्होंने ही सर्वप्रथम अज्ञानता के अन्धकार से युक्त इस सृष्टि में तारतम ज्ञान का प्रकाश किया । परम्परानुसार जनेऊ, आदि धागों को सूत्र माना जाता है, परन्तु यहाँ अक्षर ब्रह्म रूपी सूत्र को धारण करने की बात कही गई है क्योंकि वे परब्रह्म के प्रति संकेत करते हैं ।
"मै उस व्यापक प्रकृति रूपी सूत्र को जानता हूँ जिसमें ये प्रजाएँ पिरोई हुई हैं । मै सूत्र के भी सूत्र को जानता हूँ, जो कि महान ब्रह्म (अक्षर ब्रह्म) है" (अथर्व. १०/८/३८) । अर्थात् जो इस दूसरे सूत्र अक्षर ब्रह्म को जानता है, वही अक्षरातीत पूर्ण ब्रह्म को जान सकता है ..

प्रणाम जी

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