Thursday, August 20, 2015

बड़ा कहया इन माएनों , करी रोसन आकास जिमी ।

सौ गज कहे सौ तरफों के , दौड़े खाहिस दिन आदमी ॥ (श्री कुल्जम स्वरूप- मा. सा. ११/२४)

रात्रि को माजूज कहते हैं । माजूज को एक गज का लम्बा इसलिए कहते हैं क्योंकि रात्रि में सो जाने पर मन की वृत्तियां एक ही तरफ हो जाती हैं । जीवधारियों का यह पंचभौतिक शरीर ही अष्टधातु (रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, मज्जा, शुक्र और ओज) की दीवार है । प्रातः, दोपहर और सायंकाल ये तीन फौजे हैं । आजूज-माजूज निरन्तर सबकी आयु का हरण कर रहे हैं । जब ख़ुदा के हुक्म से महाप्रलय होगी तो इस दुनिया में कुछ भी नहीं बचेगा अर्थात् आजूज-माजूज रूपी काल के द्वारा सांसारिक प्राणियों की उम्र रूपी दीवार को तोड़ दिया जायेगा 

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