सुप्रभात जी
विरह-प्रेम का मार्ग नवधा भक्ति एवं योग साधना से भिन्न है। यदि पल भर के लिये भी विरह-प्रेम की गहन अवस्था प्राप्त हो जाये, तो आत्मा हद-बेहद को पारकर मूल मिलावे में विराजमान युगल स्वरूप तथा अपनी परात्म का साक्षात्कार कर लेती है। 'पंथ होवे कोट कलप, प्रेम पोहोंचावें मिने पलक।’ परिकरमा १/५३..
प्रणाम जी
विरह-प्रेम का मार्ग नवधा भक्ति एवं योग साधना से भिन्न है। यदि पल भर के लिये भी विरह-प्रेम की गहन अवस्था प्राप्त हो जाये, तो आत्मा हद-बेहद को पारकर मूल मिलावे में विराजमान युगल स्वरूप तथा अपनी परात्म का साक्षात्कार कर लेती है। 'पंथ होवे कोट कलप, प्रेम पोहोंचावें मिने पलक।’ परिकरमा १/५३..
प्रणाम जी
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