हद पार बेहद है , बेहद पार अछर ।
अछर पार वतन है , जागिए इन घर ।। (प्र. हि. ३१/१६५)
इस हद के ब्रह्माण्ड से परे बेहद का मण्डल है । इसके अन्तर्गत अक्षर ब्रह्म के चारों पाद सत्स्वरूप , केवल , सबलिक और अव्याकृत हैं । मूल तत्व सच्चिदानन्द पूर्ण ब्रह्म अक्षरातीत हैं , जो अक्षर से भी परे हैं ।
परब्रह्म सर्वव्यापक अवश्य है किन्तु अपने निजधाम में , जहाँ के कण-कण में अनन्त सूर्यों का प्रकाश है , जहाँ अनन्त आनन्द है (ऋग्वेद ९/११३/७) । गीता में भी कहा गया है कि उस ब्रह्मधाम में न तो सूर्य प्रकाशित होता है न चन्द्रमा और न अग्नि ही । जहाँ जाने पर पुनः लौटना नहीं पड़ता वह मेरा परमधाम है ..
प्रणांम जी
अछर पार वतन है , जागिए इन घर ।। (प्र. हि. ३१/१६५)
इस हद के ब्रह्माण्ड से परे बेहद का मण्डल है । इसके अन्तर्गत अक्षर ब्रह्म के चारों पाद सत्स्वरूप , केवल , सबलिक और अव्याकृत हैं । मूल तत्व सच्चिदानन्द पूर्ण ब्रह्म अक्षरातीत हैं , जो अक्षर से भी परे हैं ।
परब्रह्म सर्वव्यापक अवश्य है किन्तु अपने निजधाम में , जहाँ के कण-कण में अनन्त सूर्यों का प्रकाश है , जहाँ अनन्त आनन्द है (ऋग्वेद ९/११३/७) । गीता में भी कहा गया है कि उस ब्रह्मधाम में न तो सूर्य प्रकाशित होता है न चन्द्रमा और न अग्नि ही । जहाँ जाने पर पुनः लौटना नहीं पड़ता वह मेरा परमधाम है ..
प्रणांम जी
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