Saturday, August 8, 2015

वाणी

जो कोई सास्त्र संसार में , निरने कियो आचार।
त्रिगुन त्रैलोकी पांच तत्व, ए मोह अहंको विस्तार।।
(श्री प्राणनाथ वाणी)
इस संसार में जो शास्त्र ( धर्मग्रन्थ ) हैं, उनके ज्ञान के आधार पर यह प्रणालिका ( रीति ) निश्चित की गयी है कि मोह और अंहकार के ही विस्तार में सत्व, रज, तम इन तीनों गुणों, पाताल सहित पृथ्वी , स्वर्ग और बैकुण्ठ आदि लोक, तथा पांचों तत्वों की उत्पत्ति हुई है।
भावार्थ-
अध्यात्म जगत् में जिन ज्ञान रश्मियों द्वारा अज्ञानता का अन्धकार दूर करके सत्य का प्रकाश किया जाता है तथा मानव को सत्य की राह पर चलने के लिये अनुशासित किया जाता है, उन ज्ञान- रश्मियों ( किरणों ) का संकलित रूप ही शास्त्र कहलाता है।

प्रणाम जी

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