Sunday, August 16, 2015

वाणी

खोल आंखें रूह नूर की, क्यों नूर न देखे बेर बेर।
क्यों न आवे बीच नूर के, ज्यों नूर लेवे तोहे घेर।।

हे मेरी आत्मा ! अब तू अपनी मनोहर आंखों को खोल, तू परमधाम की इस नूरमयी शोभा को बार-बार क्यों नहीं देख रही है ? तू मायावी जगत को छोड़कर इस नूरी धाम में क्यों नहीं आ जाती, जहाँ तेरे चारों ओर नूर ही नूर घिरा (फैला) हुआ है ..

प्रणाम जी

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