रूह अल्ला महमद इमाम , मसरक आए जब ।
सूरज गुलबा आखिरी , मगरब ऊग्या तब ॥ (श्री कुल्जम स्वरूप- खु. १५/३८)
जब रूह अल्लाह (श्री श्यामा जी), रसूल साहब (श्री अक्षर ब्रह्म) और इमाम महदी (अक्षरातीत) हिन्दुस्तान में ज़ाहिर हुए, तो परमधाम का ज्ञान रूपी सूर्य पूर्व दिशा (हिन्दुस्तान) में उगा हुआ माना गया और अरब की धरती को पश्चिम की दिशा माना गया । वहाँ नूरी ज्ञान का झण्डा न होने से अज्ञानता का साम्राज्य छा गया । इसे ही पश्चिम में उगने वाला बिना रोशनी का सूर्य कहा गया है...
प्रणाम जी
सूरज गुलबा आखिरी , मगरब ऊग्या तब ॥ (श्री कुल्जम स्वरूप- खु. १५/३८)
जब रूह अल्लाह (श्री श्यामा जी), रसूल साहब (श्री अक्षर ब्रह्म) और इमाम महदी (अक्षरातीत) हिन्दुस्तान में ज़ाहिर हुए, तो परमधाम का ज्ञान रूपी सूर्य पूर्व दिशा (हिन्दुस्तान) में उगा हुआ माना गया और अरब की धरती को पश्चिम की दिशा माना गया । वहाँ नूरी ज्ञान का झण्डा न होने से अज्ञानता का साम्राज्य छा गया । इसे ही पश्चिम में उगने वाला बिना रोशनी का सूर्य कहा गया है...
प्रणाम जी
No comments:
Post a Comment