Saturday, August 1, 2015

भ्रान्ति



हमें जो लगता है कि शरीर मैं हूँ तो यह भ्रान्ति है । भ्रान्ति दो प्रकार की होती है
 1- सविकल्प भ्रान्ति -इसकी विशेषता है कि ज्ञान होने पर भ्रान्ति नहीं दिखती जैसे कि रस्सी में सर्प समझ लिया परन्तु रस्सी का ज्ञान होने पर सर्प नहीं दिखेगा ।
 2-निर्विकल्प भ्रान्ति -इस भ्रान्ति में ज्ञान होने के बाद भी भ्रान्ति दिखती रहती है जैसे कि आकाश गोल और नीला दिख रहा है तर्क के द्वारा जान लेने पर भी कि आकाश गोल और नीला नहीं है, हमें आकाश गोल और नीला ही दिखता है ।
ऐसे ही शास्त्र प्रमाण से ज्ञात हो गया कि मैं यह शरीर नहीं हूँ फिर भी लग रहा है कि शरीर ही मैं हूँ (यह निर्विकल्प भ्रान्ति है) परन्तु लगने से घबड़ाओ नहीं , बुद्धि में ढृढ़ निश्चय रखो कि शरीर मैं (आत्मा) नहीं हूँ मैं सतचिदानन्द स्वरुप आत्मा हूँ । आत्मा जब तीनों शरीर के द्वारा व्यक्त (प्रतिबिम्बित) होती है तो अनंत होते हुए भी परिच्छिन्न लगती है । यही चिदाभास है । चिदाभास में जो अहं का भाव है वही जीव है।
Satsangwithparveen.blogspot.com

प्रणाम जी

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