पुराण संहिता के अध्याय २६ श्लोक ८०,८१,८२ में सुन्दर वर्णन है-
बारह हजार सखियां, जो अक्षरातीत की अंगना हैं, माया का खेल देखने की इच्छा से इनकी मनोवृत्ति (सुरता) गोकुल में गई । वे गोपों के घरेलू कार्यों को करती हुई वहीं स्थित हो गईं । तथा माया जनित मिथ्या धारणा के अधीन होने के कारण अपने वास्तविक स्वरूप की खोज से रहित हो गईं । मूल मिलावा में विराजमान अक्षरातीत की वे प्रियायें अपने स्थानों पर बैठी ही रहीं । अक्षरातीत के सामने समूहबद्ध बैठी हुईं ही वे सपने के खेल में मोहित हो गईं ...
प्रणाम जी
बारह हजार सखियां, जो अक्षरातीत की अंगना हैं, माया का खेल देखने की इच्छा से इनकी मनोवृत्ति (सुरता) गोकुल में गई । वे गोपों के घरेलू कार्यों को करती हुई वहीं स्थित हो गईं । तथा माया जनित मिथ्या धारणा के अधीन होने के कारण अपने वास्तविक स्वरूप की खोज से रहित हो गईं । मूल मिलावा में विराजमान अक्षरातीत की वे प्रियायें अपने स्थानों पर बैठी ही रहीं । अक्षरातीत के सामने समूहबद्ध बैठी हुईं ही वे सपने के खेल में मोहित हो गईं ...
प्रणाम जी
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