(श्री प्राणनाथ वाणी पर आधारित)
तुम्हारी नाव पुरानी है और बोझ भारी है। जहाज को डुबाने वाली हवा बह रही है। हे मल्लाह! तूं सावधानी से पतवार ( चप्पू ) चला। तूं नींद छोड़कर क्यों नहीं उठता।
भाव---------
हे जीव ! तुम्हारे द्वारा धारण किये गये शरीर की उम्र ज्यादा हो गयी है। लौकिक कार्यों का उत्तरदायित्व भी बहुत अधिक है। विषय-विकारों की ऐसी तेज हवा बह रही है जो अपने झोंकों से मन को अशान्त बना रही है। ऐसी अवस्था में तूं प्रियतम परमात्मा के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जा। समर्पण ( पतवार ) के सहारे ही तूं परब्रह्म की कृपा का पात्र बनेगा और भवसागर से पार होगा। तूं शीघ्र-अति शीघ्र अपनी अज्ञानता की नींद को छोड़कर प्रियतम के प्रेम में दौड़ लगा।
प्रणाम जी
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