श्री युगल किशोर को जाप है, मन्त्र तारतम सोए ।
ब्रह्मविद्या देवी सही , पुरी नौतन मम जोए ।।७९।।
यहाँ जाप का अर्थ जीव भाव से नही समझा जा सकता है क्योंकि जीवो का जाप केवल इन्द्रियों तक ही होता है जबकि ब्रह्मसृष्टिया आत्मिक आधार पर साधना मार्ग अपनाती है इसलिए यहाँ जाप का अर्थ जपना नही अपितु पुनरावृति है पुनरावृति बार बार युगल स्वरुप को हृदये में अंकित करने की यही ब्रह्मसृष्टियो का जाप है ..क्योंकि यहाँ जीवो को पद्धति बताई गयी है इसलिए उनकी भाषा का प्रयोग किया गया है ...
इसलिए अखण्ड व आनन्दमयी परमधाम में विराजमान युगल स्वरूप (परब्रह्म व उनकी आनन्द अंग) को ही जपा जाता है । वह लीला रूप में दो हैं परन्तु असल स्वरूप तो एक ही है । हमारा मन्त्र तारतम है ।( यहाँ ये जानना भी आवश्यक है की मंत्र क्या है तारतम जीवो के लिए मंत्र है जिस से उनकी मुक्ति होनी है जबकि ब्रह्मात्मावो के लिए ये एक मार्ग है जिसपे चलकर वे अपने घर पहुचेंगी इसलिए तारतम को मंत्र केवल जीवों को समझने के भाव में कहा गया है ).. एकमात्र तारतम ज्ञान से ही क्षर व अक्षर से परे अक्षरातीत परब्रह्म के धाम, स्वरूप व लीला की पहचान होती है । इसे संसार में प्रकट करने वाले स्वयं अक्षरातीत हैं ।
देवी वह हैं जो सांसारिक कष्टों को दूर करे तथा माया के अज्ञान से छुड़ाकर अखण्ड मुक्ति प्रदान करे । ब्रह्मविद्या (पराविद्या) अर्थात पार के ज्ञान को ही देवी का स्वरूप माना गया है । श्री कुलजम स्वरूप वाणी ही परब्रह्म का ज्ञान देती है, अतः उसे ब्रह्मविद्या कहा गया है । नवतनपुरी (जामनगर, गुजरात) में सर्वप्रथम तारतम ज्ञान का प्रकटन प्रारम्भ हुआ । अतः नवतनपुरी आदरणीय पुरी है ...
प्रणाम जी
ब्रह्मविद्या देवी सही , पुरी नौतन मम जोए ।।७९।।
यहाँ जाप का अर्थ जीव भाव से नही समझा जा सकता है क्योंकि जीवो का जाप केवल इन्द्रियों तक ही होता है जबकि ब्रह्मसृष्टिया आत्मिक आधार पर साधना मार्ग अपनाती है इसलिए यहाँ जाप का अर्थ जपना नही अपितु पुनरावृति है पुनरावृति बार बार युगल स्वरुप को हृदये में अंकित करने की यही ब्रह्मसृष्टियो का जाप है ..क्योंकि यहाँ जीवो को पद्धति बताई गयी है इसलिए उनकी भाषा का प्रयोग किया गया है ...
इसलिए अखण्ड व आनन्दमयी परमधाम में विराजमान युगल स्वरूप (परब्रह्म व उनकी आनन्द अंग) को ही जपा जाता है । वह लीला रूप में दो हैं परन्तु असल स्वरूप तो एक ही है । हमारा मन्त्र तारतम है ।( यहाँ ये जानना भी आवश्यक है की मंत्र क्या है तारतम जीवो के लिए मंत्र है जिस से उनकी मुक्ति होनी है जबकि ब्रह्मात्मावो के लिए ये एक मार्ग है जिसपे चलकर वे अपने घर पहुचेंगी इसलिए तारतम को मंत्र केवल जीवों को समझने के भाव में कहा गया है ).. एकमात्र तारतम ज्ञान से ही क्षर व अक्षर से परे अक्षरातीत परब्रह्म के धाम, स्वरूप व लीला की पहचान होती है । इसे संसार में प्रकट करने वाले स्वयं अक्षरातीत हैं ।
देवी वह हैं जो सांसारिक कष्टों को दूर करे तथा माया के अज्ञान से छुड़ाकर अखण्ड मुक्ति प्रदान करे । ब्रह्मविद्या (पराविद्या) अर्थात पार के ज्ञान को ही देवी का स्वरूप माना गया है । श्री कुलजम स्वरूप वाणी ही परब्रह्म का ज्ञान देती है, अतः उसे ब्रह्मविद्या कहा गया है । नवतनपुरी (जामनगर, गुजरात) में सर्वप्रथम तारतम ज्ञान का प्रकटन प्रारम्भ हुआ । अतः नवतनपुरी आदरणीय पुरी है ...
प्रणाम जी
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