हे पापी जीव ! तूं अब तक माया की नींद में क्यों सोता रहा है। इस प्रकार तूंने तो प्रमादवश बहुत सा समय व्यर्थ में ही खो दिया है। देखते-देखते तुम्हारे शरीर की आयु भी क्षीण होने लगी है। किन्तु ! तूं अभी भी सावचेत क्यों नहीं हो रहा है ? हमारे प्राणाधार अक्षरातीत ने अपार दया करके माया का यह पंचभौतिक तन और तारतम ग्यान तुझे परदान किया है। फिर भी रे मूर्ख ! आश्चर्य है कि तूं अभी भी उनकी दया के सम्बन्ध में कुछ भी विचार नहीं कर रहा है। केवल मंत्र जाप को ही तारतम समझ कर तोता बना हुआ है ...जरा विचार तो कर ये जप तप आदि तो नवधा भक्ति है हे जीव ऐसे केसे तू उस पूर्णबृह्म को पाने के लिय अन्धा होकर विपरीत दिशा में भाग रहा है...
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प्रणाम जी
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