Sunday, August 30, 2015


दिव्य ब्रह्मपुर धाम है , घर अक्षरातीत निवास ।

निजानन्द है सम्प्रदा , ए उत्तर प्रस्न प्रकास ।।

ब्रह्मसृष्टियों का धाम दिव्य ब्रह्मपुर (परमधाम) है, जो क्षर व अक्षर से परे स्थित है । उस परमधाम का कण-कण तेज, सुगन्धि, चेतनता और आनन्द से परिपूर्ण है । वही धाम अक्षरातीत व ब्रह्मसृष्टियों के मूल तनों (परआतम) का असल निवास है । यहां के कण-कण में अक्षरातीत का स्वरूप विराजमान होने से इसे स्वलीला अद्वैत कहा जाता है ।

जो सर्वज्ञ, सबको जानने वाला ब्रह्म है, जिसकी महिमा जगत में है, निश्चित रूप से वह ब्रह्म अमृतस्वरूप दिव्य ब्रह्मपुर में स्थित है । (मुण्डक. २/२/७-३९)

उपरोक्त पद्धति को मानने वाला समुदाय ही 'श्री निजानन्द सम्प्रदाय' कहलाता है ..(याहां ये जान्ना आवयश्क है की बृह्म को कभी भी समप्रदाय में नही बांधा ता सकता लेकीन कयोंकी जीवों को पद्धति बताई गई है इसलिय उनकी भाषा मे सम्प्रदाय शब्द का परयोग किया गया है)  ब्रह्मसृष्टियों के लिय सम्प्रदाय जैसी कोइ सीमा नही होती कयोंकी वो अखंड और अनंत आनंद के धाम से आई है इसलिय उनके हृदय मे सम्प्रदाय जैसी संकिर्ता नही आती इनके भाव हर क्षेत्र में  अन्नत और संकिर्ता से परे ही होते है ..इसलिय  इनका प्रवर्तन सच्चिदानन्द परब्रह्म की आह्लादिनी शक्ति श्री श्यामा जी ने किया है ।

प्रणांम जी

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