सुप्रभात जी
हे सन्त जनों ! जिस परमात्मा ने आकाश मण्डल में इस ब्रह्माण्ड रूपी मण्डप का निर्माण किया है, जिसमें कोई भी दीवाल, स्तम्भ (खंभा) या बन्धन नहीं है, उसे आप निराकार क्यों कहते हैं ? आप विचार कीजिए कि इस प्रकार की अद्वितीय रचना दूसरा कौन कर सकता है या किस प्रकार से कर सकता है ? जिस ब्रह्म के द्वारा गहरे सागरों और ऊँचे पर्वतों का निर्माण हुआ, जिसकी सत्ता में सूर्य, चन्द्रमा और असंख्य नक्षत्र भ्रमण कर रहे हैं, दिन-रात्रि तथा ऋतुओं का चक्र परिवर्तित होता रहता है, वनस्पतियों में रंगों का परिवर्तन होता है, वह स्वयं कैसा है ? ऐसा केवल इसी ब्रह्माण्ड में ही नहीं, बल्कि अनन्त ब्रह्माण्डों में हो रहा है।
प्रणाम जी
हे सन्त जनों ! जिस परमात्मा ने आकाश मण्डल में इस ब्रह्माण्ड रूपी मण्डप का निर्माण किया है, जिसमें कोई भी दीवाल, स्तम्भ (खंभा) या बन्धन नहीं है, उसे आप निराकार क्यों कहते हैं ? आप विचार कीजिए कि इस प्रकार की अद्वितीय रचना दूसरा कौन कर सकता है या किस प्रकार से कर सकता है ? जिस ब्रह्म के द्वारा गहरे सागरों और ऊँचे पर्वतों का निर्माण हुआ, जिसकी सत्ता में सूर्य, चन्द्रमा और असंख्य नक्षत्र भ्रमण कर रहे हैं, दिन-रात्रि तथा ऋतुओं का चक्र परिवर्तित होता रहता है, वनस्पतियों में रंगों का परिवर्तन होता है, वह स्वयं कैसा है ? ऐसा केवल इसी ब्रह्माण्ड में ही नहीं, बल्कि अनन्त ब्रह्माण्डों में हो रहा है।
प्रणाम जी
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