Tuesday, July 21, 2015

परमात्मा भीतर है।



जिसकी भक्ति उसे बाहर के भगवान से जोड़े हुए है उसकी भक्ति भी धोखा है।

मन ही पूजा मन ही धूप। (संत रयदास)

चलना है भीतर! हृदय है मंदिर! उसी हृदय के अंतरगृह में छिपा हुआ बैठा है मालिक।

आदमी ने अपनी तरफ पीठ कर ली, यही उसका दुर्भाग्य है।संत रैदास याद दिलाते हैं : मुड़ो, अपनी ओर मुड़ो। हृदय ही पूजा हृदय ही धूप! छोड़ो मंदिर, मस्जिद, गिरजे, गुरुद्वारे। वे सब तो आदमी के बनाए हुए हैं। खोजो अपने भीतर के चैतन्य में, वहां आतम दृष्टि है | क्योंकि वही परमात्मा से आयी है। वही एक किरण है प्रकाश की, जो उस परम सूर्य तक ले जा सकती है, क्योंकि वह उस परम सूर्य से आती है। वही है सेतु। गलत जा रहे हो भाई about turn हो जाओ इसी जन्म मे पा लोगे ...

पेहेले आप पेहेचानो रे साधो, पेहेले आप पेहेचानो ।
बिना आप चीन्हें पार ब्रह्मको, कौन कहे मैं जानो।।

महामति कहते हैं, हे साधुजन ! सर्व प्रथम स्वयं (आत्मा) को पहचानो, क्योंकि स्वयंको पहचाने बिना कौन कह सकता है कि मैंने परब्रह्म परमात्माको पहचान लिया है.
अर्थात परमात्मा को पाना है तो शुरूआत अपने अन्दर से ही करनी होगी

ना पेहेचाने आपको, ना पेहेचाने हादी हक।
ना देखें अजाजील दिल पर, जो डालसी बीच दोजक ।।


प्रणाम जी

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